नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तमिलनाडु सरकार से पूछा कि मशहूर यूट्यूबर सवुक्कू शंकर को कई आपराधिक मामलों में रिहाई के तुरंत बाद क्यों गिरफ्तार किया गया. कोर्ट ने राज्य सरकार से इसके पीछे के कारणों के बारे में जानकारी देने को कहा. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि अगर मामले अलग-अलग और स्वतंत्र हैं, प्राथमिकियों को मिलाया नहीं जा सकता. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने जेल में बंद यूट्यूबर की याचिका पर सुनवाई 2 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी. पीठ जेल में बंद यूट्यूबर की याचिका पर अगली सुनवाई दो सितंबर को करेगी.
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) शासन और मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के मुखर आलोचक यूट्यूबर सवुक्कू शंकर ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि देश के 51 फीसदी प्रिवेंटिव डिटेंशन ऑर्डर तमिलनाडु से आते हैं, जो तमिलनाडु ‘गुंडा’ अधिनियम के तहत शक्तियों के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग को दर्शाता है.
सीजेआई ने तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा, “हम अलग-अलग (एफआईआर) को एक साथ नहीं जोड़ेंगे. हिरासत आदेश पर एक नजर डालें और हमें बताएं कि एक दिन उसे क्यों रिहा किया गया और फिर से हिरासत में लिया गया. पीठ ने कहा कि वह राज्य सरकार द्वारा गुंडा अधिनियम के तहत आरोपियों की फिर से हिरासत के पहलू पर प्रथम दृष्टया विचार करेगी. पीठ ने कहा, ‘आप (रोहतगी) जांच करें कि क्या 15 एफआईआर एक साक्षात्कार से संबंधित हैं… हम सोमवार को देखेंगे. कोर्ट ने दोनों पक्षों से संक्षिप्त नोट जमा करने को कहा है.’
राज्य सरकार ने शुरू में आरोप लगाया कि शंकर ने कहा है कि मद्रास उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीश भ्रष्ट हैं और यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें शीर्ष अदालत को हस्तक्षेप करना चाहिए. रोहतगी ने कहा कि वह महिला पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी बोलते रहे हैं. शंकर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आर बालासुब्रमण्यम ने रोहतगी की दलीलों का विरोध किया और कहा कि देश में हर साल कुल बंदी बनाए गए लोगों में से 51 प्रतिशत तमिलनाडु से आते हैं और यह गुंडा अधिनियम के “बड़े पैमाने पर दुरुपयोग” को दर्शाता है.
शंकर ने राज्य पुलिस द्वारा उनकी फिर से हिरासत को चुनौती दी है, साथ ही शीर्ष अदालत में एफआईआर को रद्द करने को भी चुनौती दी है. शीर्ष अदालत ने शुरू में आरोपी को उच्च न्यायालय जाने को कहा. आरोपी के वकील ने कहा, “जैसे ही मैं उच्च न्यायालय जाऊंगा, राज्य समय लेगा.’ सीजेआई ने कहा, “यह हमारे लिए शक्तियों का प्रयोग करने का कारण नहीं हो सकता.
शंकर (48) को 30 अप्रैल को यूट्यूब चैनल ‘रेडपिक्स 24×7’ पर एक साक्षात्कार में महिला पुलिसकर्मियों के बारे में कथित अपमानजनक बयान देने के लिए 4 मई को कोयंबटूर पुलिस ने दक्षिणी थेनी से गिरफ्तार किया था, जिसके कारण उनके खिलाफ कई एफआईआर दर्ज की गईं. इन मामलों के अलावा, यूट्यूबर पर थेनी पुलिस द्वारा कथित तौर पर ‘गांजा’ रखने का मामला भी दर्ज किया गया है.
शंकर को शीर्ष अदालत और मद्रास उच्च न्यायालय के आदेशों के अनुपालन में रिहा किया गया था. हालांकि, उन्हें 12 अगस्त को राज्य पुलिस ने फिर से हिरासत में ले लिया. उच्च न्यायालय ने 9 अगस्त को गुंडा अधिनियम के तहत शंकर को हिरासत में लेने के चेन्नई सिटी पुलिस आयुक्त के आदेश को खारिज कर दिया था. कोर्ट यह भी निर्देश दिया था कि, अगर किसी अन्य मामले में उसकी आवश्यकता नहीं है तो कोयंबटूर केंद्रीय कारागार में बंद यूट्यूबर को तत्काल रिहा किया जाए. शीर्ष अदालत ने 18 जुलाई को उनकी अंतरिम रिहाई का आदेश दिया था.
14 अगस्त को, कोर्ट आरोपी की दलीलों पर ध्यान दिया कि शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालय द्वारा उसकी रिहाई के आदेश के बाद भी, शंकर को तमिलनाडु पुलिस ने फिर से गिरफ्तार किया है. शंकर ने आरोप लगाया कि राज्य पुलिस उसे गिरफ्तार करने और हिरासत में यातना देने के लिए झूठे मामले दर्ज कर रही है. शंकर की मां ए कमला द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को स्वीकार करते हुए, उच्च न्यायालय ने उसे किसी अन्य मामले में आवश्यक न होने पर रिहा करने का निर्देश दिया था.
2 मई के हिरासत आदेश को खारिज करते हुए, उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने कहा था, “हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हिरासत का विवादित आदेश 1982 के अधिनियम 14 के तहत आवश्यक आवश्यकता और सामग्री के अनुपालन में नहीं है. इस प्रकार, पुलिस आयुक्त द्वारा जारी हिरासत आदेश को खारिज किया जाता है.” उच्च न्यायालय ने कहा था कि हिरासत में लेने वाले अधिकारी ने दोनों प्रतिकूल शिकायतें एक ही दिन – 7 मई को दर्ज की थीं. एक शिकायत लगभग छह साल बीत जाने के बाद दर्ज की गई थी, जबकि दूसरी महिला पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी से संबंधित थी.
उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती संविधान द्वारा दी गई स्वतंत्रता में निहित है और जब राज्य मशीनरी खुद ही इसका गला घोंटने लगती है, तो लोगों का लोकतंत्र में विश्वास खत्म हो जाता है.’ गुंडा अधिनियम के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को एक सलाहकार बोर्ड द्वारा जांच के अधीन एक वर्ष के लिए कैद किया जा सकता है, और प्रभावित व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं के आधार पर उच्च न्यायालय द्वारा ऐसी हिरासत की वैधता की भी जांच की जाती है.